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जन्माष्टमी के दिन कृष्ण की पूजा-उपासना की जाती है. क्योंकि इस दिन उनका जन्मदिन होता है. जन्माष्टमी के अवसर पर जानें कृष्ण के स्वरूप और इसका जीवन में पड़ने वाले महत्व के बारे में.
श्री कृष्ण जिनकी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में खासी लोकप्रियता है उनके विषय मे आज वे जानकारियां लेकर आये हैं जो अब तक न आपने सुनी और न पढ़ी होंगी। जानें 16 कलाओं के स्वामी श्री कृष्ण की लीलाओं का विषय में अद्भुत जानकारियां।
कृष्ण जन्माष्टमी नाम से ही स्पष्ट है कि भगवान कृष्ण जी का जन्म दिवस है। कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दू धर्म के देव विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित है। माना जाता है कि श्री कृष्ण ने संसार में पाप और अत्याचार बढ़ जाने के कारण व राक्षसी प्रवृत्ति के राजा कंस को मारने के लिए धरती पर जन्म लिया। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष में अष्टमी को रात्रि 12 बजे हुआ।
कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
भगवान कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ, देवता होने के कारण उनमें प्रबल शक्ति थी। राक्षस कंस को ये आकाशवाणी के माध्यम से ज्ञात हो चुका था कि देवकी की आठवीं सन्तान उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। इस कारण अनेको नवजात बच्चों की हत्या कंस ने कराई। किन्तु जिसका विनाश निश्चित है उसे नहीं रोका जा सकता। भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और उसी रात उनके पिता वासुदेव ने उन्हें यशोदा के पास पहुंचाया। श्रीकृष्ण का लालन पालन माता यशोदा ने किया जबकि उनकी जन्मदात्री देवकी थीं
जगत की रीत है कोई ऐतिहासिक कार्य होता है तो वे प्रतिवर्ष उसे महोत्सव रूप में मनाने लगते हैं। कृष्णजन्माष्टमी का अर्थ है आज ही के दिन कृष्ण जी का जन्म हुआ किन्तु उसे दोबारा मनाने का कोई महत्व धर्मग्रन्थों में नहीं बताया गया है।
कृष्ण जी का जीवन
कृष्ण जी देवकी-वासुदेव की आठवीं सन्तान थे। चूंकि उस समय देवकी और वासुदेव, राक्षस प्रवृत्ति के राजा कंस के कारावास में थे अतः कृष्ण जी को वासुदेव जी उसी रात यशोदा के पास छोड़कर आये। इस प्रकार कृष्ण जी का लालन-पालन यशोदा और नन्द जी की देखरेख में हुआ।
भगवान कृष्ण का अधिकांश जीवन राक्षसों से लड़ने और प्रजा की रक्षा करने में बीता। श्री कृष्ण आज जितने पूजनीय हैं उतने उस समय नहीं थे। उन्हें मारने की साज़िशों के तहत अनेको राक्षस उनके बाल्यकाल से ही भेजे जाने लगे थे। सुकून और सुख से इतर जीवन में अनियमितता थी। अंत मे श्री कृष्ण जी ने रहने के लिए द्वारका नगरी चुनी जहां एक ही द्वार था।
Krishna Janmashtami in Hindi: कृष्ण जी ने राक्षसों का संहार किया और लोगों की रक्षा की। उस समय कहर ढाने वाले राजा कंस जो कि वास्तव में कृष्ण जी के मामा थे, का संहार भी स्वयं श्री कृष्ण जी ने किया था। कृष्ण जी का नाम एक अन्य महत्वपूर्ण घटना के साथ आता है जो है महाभारत का युद्ध। यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। श्री कृष्ण जी ने युद्ब को रोकने का यथासम्भव प्रयत्न किया था लेकिन युद्ध नहीं टला और महाभारत के युद्ध के रूप में होकर रहा जिसमे पांडव विजयी हुए। युद्ध आरम्भ होने के पूर्व अर्जुन के सारथी बने कृष्ण ने जब अर्जुन का हृदय व मन अपने प्रियजनों के संहार की कल्पना से विचलित होते देखा तब गीता ज्ञान सुनाया, किन्तु वास्तव में कृष्ण ने गीता का ज्ञान नहीं दिया बल्कि ब्रह्म यानी ज्योतिनिरंजन ने उनके शरीर मे प्रविष्ट होकर दिया। इसे हम प्रमाण सहित जानेंगे। श्रापवश 56 करोड़ यादव आपस में लड़कर कटकर मर गए। और उसी श्रापवश त्रेतायुग की बाली वाली आत्मा जो द्वापरयुग में शिकारी थी उसके तीर मारने से श्री कृष्ण की मृत्यु हो गई। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण जीवन में बचते और बचाते रहे किन्तु सुकून से नहीं रह पाए अंततः श्रापवश मृत्यु को प्राप्त हुए
श्री कृष्ण का जन्म किस समय हुआ था?
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र के दिन, रात्रि के 12 बजे हुआ था जिसके उपलक्ष्य में भारत में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है।
श्री कृष्ण का जन्म कब हुआ?
कृष्ण जी का जन्म द्वापर युग में, मथुरा के कारागार में हुआ था। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व के आसपास आधी रात को हुआ था। उस रात चंद्रमा का आठवां चरण था, जिसे अष्टमी तिथि के रूप में जाना जाता है। जन्माष्टमी का आयोजन इस दिन भगवान कृष्ण के जन्म के जश्न के रूप में भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) महीने के अंधेरे पखवाड़े की अष्टमी के दिन किया जाता है।
श्री कृष्ण का जन्म और मृत्यु कब हुई थी?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व में हुआ था। कृष्ण जी का जन्म द्वापर युग में भादो मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी को मथुरा के कारागार में हुआ था। उनका बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगांव, बरसाना और द्वारिका आदि जगहों पर बीता था। महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने 36 वर्षों तक द्वारिका पर राज किया। इसके बाद उन्होंने 2987 ईसा पूर्व 125 वर्ष की आयु में अपनी देह त्याग दी। महाभारत के युद्ध उपरांत दुर्वासा ऋषि के श्राप की वजह से उनकी मृत्यु हुई थी। उनकी मृत्यु बालिया नाम के भील शिकारी के तीर लगने से हुई। सुग्रीव के भाई “बाली” वाली आत्मा जिसे त्रेता युग में श्री राम ने धोखे से मारा था, उनसे मरकर द्वापर में उन्हीं के अवतार श्री कृष्ण को बदला चुकाना पड़ा।
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