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क्‍यों मनाया जाता है नवरात्रि का पर्व, क्‍या है इतिहास ?

नवरात्र का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहला नवरात्र चैत्र कृष्‍ण प्रतिपदा से आरंभ होकर नवमी तक मनाया जाता है। उसके बाद शारदीय नवरात्र पितृ पक्ष के समापन के बाद आश्विन मास में शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर नवमी तक मनाया जाता है। दोनों ही नवरात्र में भक्‍तगण पूरे श्रद्धा भाव से मां दुर्गा की उपासना करते हुए नौ व्रत करते हैं।ऐसा माना जाता है कि जिस मौसम में शारदीय नवरात्र का आरंभ होता है उस मौसम में हल्‍की सर्दी पड़ने लग जाती है और बदलता मौसम लोगों के जीवन को प्रभावित न करे इस‍के लिए नियम और संयम का पालन करते हुए 9 दिन का उपवास रखने का विधान पौराणिक काल से चला आ रहा है। नवरात्र शक्ति की आराधना करते हुए मानिसक और शारीरिक संतुलन प्राप्‍त करने का पर्व है। नवरात्र के व्रत रखकर उपासक मौसम के बदलाव को सहने के लिए खुद को मजबूत बनाता है।

नवरात्र में मां दुर्गा के 9 रूपों की आराधना की जाती है।रामजी के हाथों रावण का वध हो, इस उद्देश्य से नारद ने श्रीराम से इस व्रत का अनुष्ठान करने का अनुरोध किया था। इस व्रत को पूर्ण करने के पश्चात रामजी ने लंका पर आक्रमण कर अंत में रावण का वध किया। तब से इस व्रत को कार्यसिद्धि के लिए किया जाता रहा है।नवरात्रि में मां दुर्गा की कृपा अन्य दिनों की तुलना में 1000 गुना अधिक बढ़ जाती है। देवीतत्त्व का अत्यधिक लाभ लेने के लिए नवरात्रि की कालावधि में श्री दुर्गादेव्यै नमः मंत्र का जप अधिक से अधिक करना चाहिए।नवरात्रि में माता की पूजा के बाद परिवार समेत इस मंत्र का जप कर सकते हैं। इस मंत्र के बारे में दुर्गा सप्तशती में बताया है कि इससे धन संबंधित सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं और जीवन में प्रसन्नता है। इस मंत्र के जप से न केवल आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है

नवरात्रि एक शुभ हिंदू त्योहार है। नौ दिनों तक चलने वाला यह त्योहार देवी दुर्गा को समर्पित है। इस साल यह त्योहार गुरुवार, 2 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 2024 तक पूरे देश में मनाया जाएगा। इस पवित्र त्योहार में प्रार्थना, उपवास, संगीत, नृत्य और कई अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ शामिल हैं।

शरद नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

‘नवरात्रि’ शब्द का अर्थ है ‘नौ रातें’ और इसका इतिहास भारतीय संस्कृति की विश्वास प्रणाली में गहराई से निहित है।
इस त्यौहार के पीछे मुख्य कहानी देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच युद्ध की है। वह एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसे भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था, जिससे वह किसी भी मनुष्य या भगवान के खिलाफ अजेय हो गया था। हालाँकि, ब्रह्मा से वरदान प्राप्त करने के बाद, वह घमंडी हो गया और स्वर्ग और पृथ्वी पर कहर बरपाने ​​लगा।
देवता राक्षस को हराने में असमर्थ थे, इसलिए उन्होंने देवी दुर्गा से मदद मांगी क्योंकि वह सभी देवताओं की शक्तियों को मिलाकर बनाई गई थी और स्त्री शक्ति और शक्ति के अंतिम अवतार के रूप में उभरी थी। इसके बाद, वह एक शेर पर सवार होकर महिषासुर के साथ भीषण युद्ध करने के लिए निकल पड़ी जो नौ दिनों और रातों तक चला और आखिरकार उसने राक्षस को हरा दिया। इसलिए, हर साल लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक नवरात्रि मनाते हैं।

नौ दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार बहुत मायने रखता है और पूरे देश में इसे मनाए जाने का एक लंबा इतिहास है। त्यौहारों का मौसम विभिन्न समुदायों के लोगों द्वारा देवी दुर्गा की पूजा करने और अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक मनाने के साथ शुरू होता है। पूजा के अलावा, हज़ारों भक्त, विशेष रूप से गुजरात में, गरबा नृत्य के साथ त्यौहार मनाते हैं। समानांतर रूप से, पूरे देश में भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है, जो इसे भक्ति से भरे उपवास और प्रार्थनाओं का त्यौहार बनाता है।

अगर नवरात्रि में सही फूलों से मां दुर्गा की पूजा की जाए, तो उनके आशीर्वाद की प्राप्ति और भी सुलभ हो सकती है. आइए जानते हैं नौ देवियों के प्रिय फूल कौन-कौन से हैं:

मां दुर्गा के रुप प्रिय फूल के नाम
शैलपुत्री गुलाब या चमेली के फूल
ब्रह्मचारिणी सफेद रंग के फूल खासकर कमल चमेली के फूल
चंद्रघंटा लाल रंग के फूल गुड़हल
कूष्मांडा पीले रंग के गेंदे के फूल
स्कंदमाता लाल और पीले रंग के फूल गुलाब और गेंदे के फूल
कात्यायनी लाल गुड़हल के फूल
कालरात्रि नीलकमल और चमेली के फूल
महागौरी चमेली और बेली के फूल
सिद्धिदात्री गुलाब और गुड़हल

1. शैलपुत्री

नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती हैं. उन्हें सफेद और गुलाबी रंग के फूल विशेष रूप से प्रिय हैं. इसलिए भक्तगण गुलाब या चमेली के फूल चढ़ाकर उनकी पूजा करते हैं.

2. ब्रह्मचारिणी

दूसरे दिन भक्तजन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करते हैं, जिन्हें सफेद रंग के फूल बहुत पसंद हैं. खासकर कमल और चमेली के फूल उनकी पूजा में विशेष माने जाते हैं. इन फूलों से माता प्रसन्न होकर भक्तों को सादगी और संयम का वरदान देती हैं.

3. चंद्रघंटा

तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा होती है. उन्हें लाल रंग के फूल विशेष प्रिय होते हैं. गुड़हल का फूल उनकी पूजा में विशेष महत्व रखता है. इस फूल से पूजा करने पर शौर्य और साहस का आशीर्वाद मिलता है.

4. कूष्मांडा

कूष्मांडा माता को पीले रंग के फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है. सूरजमुखी और गेंदे के फूल इनकी पूजा में विशेष रूप से उपयोग किए जाते हैं, जिससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.

5. स्कंदमाता

पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा होती है. इन्हें लाल और पीले रंग के फूल अत्यंत प्रिय होते हैं. गुलाब और गेंदे के फूल अर्पित कर भक्त उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं.

6. कात्यायनी

छठे दिन की देवी कात्यायनी हैं. उन्हें लाल गुड़हल के फूल अत्यंत प्रिय होते हैं. गुड़हल का फूल माता को चढ़ाने से सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है.

7. कालरात्रि

देवी कालरात्रि की पूजा सातवें दिन की जाती है. इन्हें नीलकमल और चमेली के फूल चढ़ाए जाते हैं. इन फूलों से पूजा करने से भय और कष्टों से मुक्ति मिलती है.

8. महागौरी

आठवें दिन महागौरी की पूजा होती है. इन्हें सफेद रंग के फूल बहुत प्रिय होते हैं. खासकर चमेली और बेली के फूल उनकी पूजा में विशेष माने जाते हैं. इनसे माता का आशीर्वाद मिलता है.

9. सिद्धिदात्री

नवें और अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा होती है. इन्हें लाल रंग के फूल अत्यंत प्रिय होते हैं. गुलाब और गुड़हल के फूल अर्पित करने से सिद्धि और सफलता का वरदान मिलता है.

नवरात्रि में सही फूलों का चुनाव करके भक्तजन देवी मां को प्रसन्न कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त कर सकते हैं.

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